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आज भी कंप्यूटर के सूचना संसार में अंग्रेजी का विशालतम और सर्वाधिक बिकाऊ बाजार दुनिया पर हावी है । इसमें संदेह नहीं है कि दुनिया की जो भाषाएँ अपने को कंप्यूटर के अनुसार ढाल नहीं पाएगी, उन्हें अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ेगा । आज के तीव्र युग का सामना पुराने साधनों से नहीं किया जा सकता । आज भाषा और कंप्यूटर का संबंध और अपरिहार्य है । इसमें कोई संदेह नहीं कि कंप्यूटर की अपनी कोई भाषा नहीं होती, किंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि इसे अपने जन्म काल से अंग्रेजी बोलने का अभ्यास सबसे ज्यादा कराया गया है । इस स्थिति में अपने आप को स्थापित करने के लिए अंग्रेजी तर भाषाओं को अपार आत्मविश्वास तथा अप्रतिहत कार्य करने की आवश्यकता है ।
कोई भी भाषा का ज्ञान के साधनों के साथ-साथ अपने बाजार की मांग और विशालता के बल पर अपने आप को स्थापित करती है । हिंदी भारत के विशालतम भूभाग की भाषा है । स्वभावतः इसका बाजार भी विशालतर है । यह हिंदीतर भाषी क्षेत्रों में या हिंदीतर
भाषी लोगों के बीच भी व्यापक है । उसकी इस विशेषता को किसी भी राजनीति के द्वारा बाधित नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका संबंध मात्र भावना से नहीं रोजी रोटी देने वाले बाजार से भी है । यह बाजार अब ग्रामीण इलाकों में भी तेजी से फैल रहा है । कंप्यूटर बड़ी तेजी के साथ बाजार में अपना सिक्का कायम कर चुका है । इस बाजार में अंग्रेजी का साम्राज्य नहीं, यहां हिंदी जरूरी है । हिंदी माध्यम से कंप्यूटर के उपयोग का तात्पर्य है हिंदी सॉफ्टवेयर की उपलब्धता । व्यापारिक क्षेत्र के विभिन्न कार्य उसी से संपन्न होते है ।
आज के युग में कंप्यूटर की इतनी आवश्यकता बढ़ गई है । नए नए युग में अत्याधुनिक काल में कंप्यूटर से इतनी सुविधा हुई है कि, कहीं पर भी आप अपने काम में एक्यूरेसी एवं आकर्षक सेवाएं दे सकते हैं।
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`भारत के पूर्व राष्ट्रपति वह महान वैज्ञानिक ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है । उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु में हुआ । एक मध्यम वर्गीय परिवार से होने के बावजूद उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की ताकि भारत के तकनीकी विकास में हाथ बटा सके । उनका पूरा नाम अब्दुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम है । उनके नेतृत्व में त्रिशूल, पृथ्वी, धनुष्य व आकश आदी मिसाइल का सफल प्रक्षेपण किया गया । राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे तत्कालीन प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक
सलाहकार भी रहे । भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई ।
भारत के राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने जनता को यह विश्वास दिलाने का पूरा प्रयत्न किया कि भारत वासियों की क्षमता किसी से भी कम नहीं है । यदि हम सब चाहे तो इस राष्ट्र को विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में खड़ा कर सकते हैं । एक राष्ट्रपति के रूप में उनकी उपलब्धियां वास्तव में प्रशंसनीय है । वह एक ऐसा व्यक्तित्व है जो आने वाले कल के सुनहरे निर्माण के लिए कटिबद्ध है । वे लोगों द्वारा इतने सराहे जाते हैं कि अपने कार्यकाल में "पीपल प्रेसिडेंट" के नाम से जाने जाते हैं ।
स्वदेशी रॉकेट प्रणाली विकसित करने वाले कलाम 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के मिशन पर दिन-रात कार्यरत है । जब उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली तो समारोह में स्कूली बच्चों को भी शामिल किया । उन्होंने नई पीढ़ी को संदेश दिया कि अपने सपने तथा इरादे ऊंचे रखो । स्वप्नदर्शी युवा पीढ़ी ही आने वाले कल को सुनहरा बना सकती है क्योंकि उसमें अद्भुत लगन व कर्मठता होती है । अनेक विश्वविद्यालयों में वह शिक्षण संस्थाओं ने उन्हें मानद उपाधि प्रदान कर अपनी संस्था का नाम बढ़ाया ।
3.
दीपावली इस साल भी आ गई । हर साल ही आती है । न जाने किस भले आदमी के मन में किस शुभ मुहूर्त में दीपकों के उत्सव की बात आई थी । पंडितों ने इस पर्व का इतिहास खोजने का प्रयत्न किया है । भक्तों का विश्वास कुछ और है, पंडितों के अनुसंधान कुछ ओर मगर उत्सव पुराना है । चंचला लक्ष्मी का प्रसाद न जाने कितने लोगों को प्राप्त हुआ और कितने उससे वंचित हो गए पर दीपमाला का उत्सव नहीं रुका । साधारणतः यह विश्वास किया जाता है कि यह लक्ष्मी पूजा का दिन है । बंगाल में दूसरी परंपरा है ।
वह इस तिथि को काली जी की पूजा होती है । लक्ष्मीपूजा वहां अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन होती है । उसे कोजागर पूर्णिमा कहते हैं । पर पूजा लक्ष्मी की हो या काली की दीपमाला सर्वत्र जगमगा उठती है । देवी - देवता और उनके पूजा गौण है, मनुष्यचित्त का उल्लास प्रधान और यह उत्साह उल्लास का ही है ।
वैसे यह पर्व इतने दिनों तक जीता रहा, निश्चय ही ईसके दीर्घ इतिहास में ऐसे अवसर आए होंगे कि जब शक्तिशाली समझे जानेवाले लोगों को यह उत्सव पसंद नहीं आया होगा । आज से हजारों वर्ष पहले मनुष्य ने निश्चय किया था कि वह दरिद्रता की अवस्था में नहीं रहेगा, वह सामाजिक रूप में समृद्ध रहेगा । एक व्यक्ति नहीं एक परिवार नहीं एक जाति भी नहीं बल्कि समूच मानव समाज समृद्ध चाहता है, अमंगल का अंत चाहता है । दीपावली का उत्सव उसी सामाजिक मंगलेच्छा का दुश्यमान मूर्तरूप है ।
चारों और जब अभाव का करुण हाहाकार सुनाई दे रहा है, दीपावली अपना मंगल संदेश लेकर आई है । अब मनुष्य की मंगलेच्छा जीएगी और बंधनों से मुक्त होगी ।
4.
मेरे खिड़की के सामने एक पेड़ खड़ा है । मेरी ही तरह साधारण देह है उसकी, पर जब उस पर फूल आते हैं तो मुझे ऐसा लगता है जैसे आकाश से बरसे देवताओं की हंसी का अंबार हो । चारों और हल्के लाल रंग के फूल, यहां तक कि पत्ते भी ढक से जाते हैं । मैं अपने पलंग पर बैठा उसे घंटों देखता रहता हूं । पर मन नहीं भरता । मैंने अक्सर सोचा है कि काली मिट्टी में जन्मे कुरुप तन पर आश्रित इस पेड़ में ऐसे कोमल पत्ते और इतने सुंदर फूलों के सृष्टि विश्व का कितना बड़ा चमत्कार है । सोचते सोचते ही में
कई बार उठ कर अपने भावुकता के आवेश में उस पेड़ से जा लिपटा हूँ, और मुझे ऐसा आनंद आया है, मानो में अपने किसी मित्र से मिल रहा हूं ।
शास्त्र और विज्ञान दोनों वृक्षों को सजीव मानते हैं । मेरा भी इसमें ही यूं ही विश्वास था, पर 1942 की जेल यात्रा में अपने साथियों के साथ जब मैं डाकू-वार्ड में बंद किया गया तो कुछ ही दिन पहले अपनी पत्नी की मृत्यु के कारण मेरे मन पर छाई शून्यता और भी घणी हो गई। शून्यता के इसी वातावरण में 1 दिन चांदनी रात में अचानक चौक में खड़े पेड़ की जीवन शक्ति का मुझे साक्षात अनुभव
हुआ और मुझ पर मुझ पर से शून्यता का वातावरण कुछ हट सा गया । तब से वृक्षों के साथ मेरी आत्मीयता और भी गहरी हो गई ।
उस दिन भी मैं कुछ ऐसे ही मूड में था कि उस पेड़ के पास पहुंच गया । संध्या का समय था और सूर्य की हल्की किरणों से वह और भी भव्य हो रहा था । मैंने कहा मित्र आज तो तुम अपनी हंसी में आप ही लिपट जा रहे हो, क्या बात है पेड बेचारा क्या बोलता, पर तभी कुछ फूल नीचे आए ।
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मैंने अपने लंबे जीवन काल में अनगिनत परिवर्तन देखें है । इतिहास के कई रोमांचक घटनाएं मेरी आंखों के सामने घटित हुई है । मैं आपको अपने जीवन की वहीं घटनाए सुनाऊंगा, जो दिलचस्प है और जिनमें मेरे अतीत की मधुर स्मृतियां गुंथी हुई है।
मेरा निर्माण आज से लगभग 100 साल पहले दिल्ली शहर में हुआ था। तब देश में शिक्षा का प्रचार बहुत कम था । तभी इस नगर में लोगों को एक हिंदी पाठशाला की जरूरत महसूस हुई। धनी -मानी वर्ग के धन- दान से मेरा निर्माण हुआ । नया रूम नई उम्र और नई चमक-दमक । निर्माण होते ही सैकड़ों विद्यार्थी यहां आकर शिक्षा पाने लगे । विद्वान अध्यापकों की जवानी यहां गूंजने लगी । मैं यह सोचकर प्रसन्न हो रहा था कि यहां पढ़ने वाले विद्यार्थी बड़े होकर देश और दुनिया में मेरा नाम रोशन करेंगे । न जाने कितने विद्यार्थी आए और पढ़ाई समाप्त करके चले गए । उनमें से किसी किसी से तो मैं बहुत प्यार करता था । उस समय मुझे यह पता नहीं था कि जो भाषा मुझ पर पनप रही है वहीं आगे चलकर भारत की राष्ट्रभाषा बनेगी । सन 1905 का विदेशी बहिष्कार आंदोलन मुझे अच्छी तरह याद है, जब मेरे आगे विद्यार्थियों ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी । 1911 में वह दिन भी मैं नहीं भूला जब जॉर्ज पंचम रानी मेरी के साथ मेरे करीब से गुजरे थे । राष्ट्रपिता गांधी जी के कई प्रवचन अभी तक मेरे कानों में गूंज रहे हैं । जिसे उन्होंने यहां विद्यार्थियों के सामने दिए थे । श्री मालवीयजी के भाषण भी मुझे अच्छी तरह याद है, जिसे उन्होंने यह विद्यार्थियों के सामने दिए थे ।
hindi 40 its very tough
ReplyDeletethank you for sharing
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